Jama Masjid सर्वे पर विवाद, ओवैसी और मदनी ने कड़ी आपत्ति जताई, सांप्रदायिक माहौल को लेकर चिंता व्यक्त की
संभल, उत्तर प्रदेश के Jama Masjid सर्वे को लेकर विवाद ने अब और अधिक तूल पकड़ लिया है। अदालत के आदेश पर मंगलवार को मस्जिद परिसर का सर्वे किया गया, जिसके बाद सांप्रदायिक तनाव बढ़ गया है। एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी और जमियत उलेमा-ए-हिंद के अध्यक्ष मौलाना महमूद असद मदनी ने इस मामले पर कड़ी प्रतिक्रिया दी है। दोनों नेताओं ने इस घटनाक्रम को देश की सांप्रदायिक एकता के लिए खतरनाक बताते हुए इसे राष्ट्रीय सद्भाव के खिलाफ करार दिया।
जमियत उलेमा-ए-हिंद का बयान
मौलाना महमूद असद मदनी ने इस मामले पर चिंता जताई और कहा, “देश में सांप्रदायिक तत्व झूठे और सही इतिहास के मिश्रण से शांति और व्यवस्था को नुकसान पहुँचा रहे हैं।” उन्होंने कहा, “पुरानी कब्रों को खोदने और ऐतिहासिक संदर्भों को फिर से परिभाषित करने का प्रयास देश की धर्मनिरपेक्ष नींव को कमजोर कर रहा है। यह राष्ट्रीय एकता और सद्भाव के लिए सही नहीं है।” मौलाना मदनी ने प्रशासन से अपील की कि वे ऐसे मामलों को रोकने के लिए कड़े कदम उठाएं ताकि देश में शांति और सौहार्द बनाए रखा जा सके।
ओवैसी का तीखा बयान
एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी ने इस मामले पर गंभीर सवाल उठाए हैं। उन्होंने कहा, “बाबरी मस्जिद के फैसले ने हिंदू संगठनों को देश भर में मुस्लिम पूजा स्थलों को निशाना बनाने के लिए प्रेरित किया है। संभल के जामा मस्जिद के मामले में अदालत ने याचिका दायर होते ही तीन घंटे के भीतर मस्जिद स्थल का सर्वे कराने का आदेश दिया। यह वही प्रक्रिया है जो बाबरी मस्जिद विवाद में हुई थी।”
ओवैसी ने यह भी आरोप लगाया कि “स्थान पूजा अधिनियम” को कमजोर किया जा रहा है। उन्होंने अदालत से अपील की कि ऐसे मामलों को शुरुआती चरण में ही खारिज कर दिया जाए ताकि समाज में सांप्रदायिक तनाव और बढ़ने से बच सके।
क्या है पूरा मामला?
हिंदू पक्ष का दावा है कि जामा मस्जिद को 1529 में मुग़ल सम्राट बाबर द्वारा हरिहर मंदिर को तोड़कर बनवाया गया था। इसी आधार पर हिंदू पक्ष ने अदालत में एक याचिका दायर की थी, जिसमें उन्होंने मंदिर परिसर में पूजा करने की अनुमति मांगी थी।
याचिका पर सुनवाई करते हुए अदालत ने मस्जिद परिसर का सर्वे कराने का आदेश दिया। इसके बाद, मंगलवार शाम को प्रशासन ने पुलिस और अधिकारियों की मौजूदगी में सर्वे कराया। इस दौरान पूरे परिसर का वीडियो और फोटो लिया गया।
सर्वे के दौरान तनाव
जैसे ही सर्वे की जानकारी मिली, मुस्लिम समुदाय के लोग नाराज हो गए और मस्जिद के आसपास भीड़ इकट्ठा हो गई, जिससे तनाव का माहौल बन गया। प्रशासन ने सुरक्षा व्यवस्था बढ़ा दी और महंत ऋषिराज को मस्जिद परिसर से हटा दिया। इस दौरान पुलिस बल ने पूरे क्षेत्र को घेर लिया।
जामा मस्जिद विवाद का इतिहास
महंत ऋषिराज गिरी का दावा है कि यह मस्जिद हरिहर मंदिर को तोड़कर बनाई गई थी। उनका कहना है कि यह स्थान ‘भगवान कल्कि’ का जन्मस्थान है, जो भगवान विष्णु के दसवें अवतार माने जाते हैं। उन्होंने यहां हिंदू पूजा की अनुमति देने की मांग की है।
मुस्लिम समुदाय का विरोध
मुस्लिम समुदाय ने अदालत के इस आदेश पर गहरी नाराजगी जताई है। उनका कहना है कि यह कदम सांप्रदायिक तनाव को और बढ़ाएगा और देश की गंगा-जमुनी तहजीब को नुकसान पहुँचाएगा। मुस्लिम नेताओं का मानना है कि इस तरह के विवाद देश में साम्प्रदायिक सौहार्द को बिगाड़ सकते हैं।
आगे की स्थिति क्या होगी?
अदालत ने सर्वे रिपोर्ट 29 नवम्बर तक पेश करने का आदेश दिया है। अब इस मामले की अगली सुनवाई में यह साफ हो पाएगा कि आगे क्या कार्रवाई की जाएगी। लेकिन प्रशासन और सांप्रदायिक तनाव को देखते हुए पूरे इलाके में सुरक्षा व्यवस्था कड़ी कर दी गई है।
क्या असर पड़ेगा?
विशेषज्ञों का मानना है कि इस तरह के विवाद समाज में दरार पैदा करते हैं और साम्प्रदायिक सौहार्द को गंभीर नुकसान पहुँचा सकते हैं। अदालत और प्रशासन को इस मामले को बेहद सावधानी से हैंडल करना चाहिए ताकि किसी भी पक्ष को अन्याय का एहसास न हो और समाज में शांति बनी रहे।
जामा मस्जिद विवाद ने एक बार फिर यह सवाल खड़ा कर दिया है कि धार्मिक स्थलों पर ऐतिहासिक विवादों को कैसे हल किया जाए। सभी पक्षों को शांति और सौहार्द बनाए रखने के लिए प्रयास करने चाहिए। अदालत और प्रशासन को भी यह सुनिश्चित करना चाहिए कि ऐसे मामलों का निपटारा न्याय और निष्पक्षता के आधार पर हो, ताकि समाज में सांप्रदायिक तनाव न बढ़े।
इस मामले पर सरकार और न्यायपालिका का रुख यह तय करेगा कि भविष्य में ऐसे मामलों में किस दिशा में कार्रवाई की जाती है। फिलहाल, सभी की नजरें इस मामले की अगली सुनवाई और उसके बाद आने वाले फैसले पर होंगी।